सोमवार, 15 अगस्त 2011

दयानिधि मारन का “निजी टेलीफ़ोन एक्सचेंज” और मनमोहन का धृत “राष्ट्रवाद…

भारत में मंत्रियों, अफ़सरों एवं उनके रिश्तेदारों द्वारा सरकारी संसाधनों का स्वयं के लिये उपयोग एवं दुरुपयोग एक आम बीमारी बन चुकी है। सरकारी दफ़्तर में काम करने वाले बाबू द्वारा बच्चों के लिए कागज घर ले जाना हो या नागर-विमानन मंत्री द्वारा इंडियन एयरलाइंस के विमानों को अपने बाप की जागीर समझना हो, यह बीमारी नीचे से ऊपर तक फ़ैली हुई है। मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल के पहले पाँच साल “ईमानदार बाबू” की अपनी छवि गढ़ी, जिसके अनुसार चाहे जितने मंत्री भ्रष्ट हो जाएं, लेकिन मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) तो “ईमानदार” हैं… लेकिन यूपीए-2 के दूसरे कार्यकाल के दो साल के भीतर ही अब मनमोहन सिंह कभी बेहद मजबूर, तो कभी बेहद शातिर, तो कभी बेहद बहरे, कभी जानबूझकर अनजान बनने वाले, तो कभी परले दर्जे के भोले नज़र आये हैं। कलमाडी (Suresh Kalmadi) से लेकर कनिमोझी (Kanimojhi) तक जैसे-जैसे UPA की सड़ांध बाहर आती जा रही है, मनमोहन सिंह की “तथाकथित ईमानदारी” अब अविश्वसनीय और असहनीय होती जा रही है…

ताजा मामला सामने आया है हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से बिदा किए गये दयानिधि मारन (Dayanidhi Maran) का। द्रविड मुनेत्र कषघम (DMK) के “पिण्डारी दल” के एक सदस्य दयानिधि मारन ने अपने घर और कम्पनी के दफ़्तर के बीच 323 लाइनों का एक निजी एक्सचेंज ही खोल रखा था। खा गये न झटका??? जी हाँ, ए. राजा से पहले दयानिधि मारन ही “दूध देने वाली गाय समान” टेलीकॉम मंत्रालय में मंत्री थे। यह सभी लाइनें उन्होंने BSNL के अधिकारियों को डपटकर और BSNL के महाप्रबन्धक के नाम से उनकी बाँह मरोड़कर अपने घर और सन टीवी के दफ़्तर में लगवाईं। टेलीकॉम मंत्रालय के मंत्री होने के नाते उन्होंने अपने “अधिकारों”(?) का जमकर दुरुपयोग किया, और मेरा भारत इतना महान है कि चेन्नै में मारन के घर से साढ़े तीन किलोमीटर दूर स्थित सन टीवी के मुख्यालय तक ऑप्टिकल फ़ाइबर के उच्च क्षमता वाली अण्डरग्राउण्ड लाइनें बिछाई गईं, सभी 323 टेलीफ़ोन नम्बर चीफ़ जनरल मैनेजर BSNL के नाम से लिए गये। हैरान हो गए ना??? लेकिन इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है, भारत में जो मंत्री और जो अफ़सर जिस मंत्रालय या विभाग में जाता है वहाँ वह “जोंक” की तरह उस विभाग और आम जनता का खून चूसने के “पावन कार्य” मे तत्काल लग जाता है।



अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर 323 टेलीफ़ोन लाइनों का मारन ने क्या किया? मारन के चेन्नई स्थित बोट क्लब वाले मकान से जो लाइनें बिछाई गईं, वे सभी ISDN लाइनें थीं। जैसा कि सभी जानते हैं ISDN लाइनें भारी-भरकम डाटा ट्रांसफ़र एवं तीव्रगति के इंटरनेट एवं टीवी सिग्नलों के संचालन में महत्वपूर्ण होती हैं। मारन ने शातिराना अन्दाज़ में शुरु के 23 टेलीफ़ोन नम्बर 24372211 और 24372301 के बीच में से लगवाए, परन्तु शायद बाद में यह सोचकर, कि “मेरा कोई क्या उखाड़ लेगा?” मारन ने अगले 300 टेलीफ़ोन नम्बर 24371500 से 24371799 तक एक ही नाम अर्थात चीफ़ जनरल मैनेजर BSNL के नाम से लगवा डाले, चूंकि सभी नम्बरों के शुरुआती चार अंक समान ही थे, तो मारन के घर और सन टीवी के दफ़्तर के बीच एक निजी टेलीफ़ोन एक्सचेंज आरम्भ हो गया। इसमें फ़ायदा यह था कि BSNL को चूना लगाकर मनचाहा और असीमित डाटा डाउनलोड-अपलोड किया गया एवं सन टीवी के सभी व्यावसायिक एवं आर्थिक कारोबार की सभी संचार व्यवस्था मुफ़्त हासिल की गई। दूसरा फ़ायदा यह था, कि इस निजी एक्सचेंज के कारण टेलीफ़ोन टैपिंग होने का भी कोई खतरा दयानिधि मारन को नहीं रह गया था।

जनवरी 2007 से दयानिधि मारन ने BSNL को “दुहना” शुरु किया और सन टीवी के कई कार्यक्रम विदेशों में ISDN लाइन के जरिये मुफ़्त में पहुँचाए। सीबीआई की जाँच में यह बात सामने आई है कि मारन ने अपना यह निजी टेलीफ़ोन एक्सचेंज कुछ इस तरह से डिजाइन और प्रोग्राम किया था कि BSNL महाप्रबन्धक और उच्च स्तरीय इंजीनियरों के अलावा किसी को भी इस बारे में भनक तक नहीं थी, क्योंकि इस एक्सचेंज के निर्माण, टेलीफ़ोन लाइनों को बिछाने, इनका कनेक्शन मुख्य एक्सचेंज में “विशेष राउटरों” के जरिये जोड़ने सम्बन्धी जो भी काम किए गये, इसमें “काम खत्म होते ही” उस कर्मचारी का तबादला चेन्नई से बहुत दूर अलग-अलग जगहों पर कर दिया जाता था। यदि कलानिधि मारन का सन टीवी यही सारी “सेवाएं” BSNL या एयरटेल से पैसा देकर लेता तो उसे करोड़ों रुपए का शुल्क चुकाना पड़ता और हर महीने का तगड़ा बिल आता, सो अलग…। लेकिन “ईमानदार बाबू” के धृतराष्ट्रवादी शासन में हर मंत्री सिर्फ़ चूसने-लूटने-खाने में ही लगा हुआ है तो दयानिधि मारन कैसे पीछे रहते?

(सभी स्नैप शॉट PMO को पेश की गई सीबीआई रिपोर्ट के अंश हैं - साभार श्री एस गुरुमूर्ति)

सीबीआई की प्राथमिक जाँच में एक मोटे अनुमान के अनुसार सिर्फ़ एक टेलीफ़ोन क्रमांक 24371515 से मार्च 2007 (एक महीने में) 48,72,027 कॉल्स (सभी प्रकार का डाटा जोड़ने पर) किए गये। अब आप अनुमान लगाईये कि जब एक टेलीफ़ोन नम्बर से एक महीने में 49 लाख कॉल्स किए गए तो 323 लाइनों से कितने कॉल्स किये गये होंगे? यह सिलसिला जनवरी 2007 से अप्रैल 2007 तक ही चला (क्योंकि 13 मई को मारन ने दूरसंचार मंत्रालय से इस्तीफ़ा दिया)। परन्तु सीबीआई ने जो हिसाब लगाया है उसके अनुसार इस दौरान BSNL को लगभग 630 करोड़ टेलीफ़ोन कॉल्स का चूना लग चुका था, यदि 70 पैसे प्रति कॉल यूनिट भी मानें तो सन टीवी को 440 करोड़ रुपए का टेलीफ़ोन बिल नहीं चुकाना पड़ा, क्योंकि दयानिधि मारन की “दया” दिल्ली से चेन्नै की तरफ़ उमड़-उमड़कर बह रही थी। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा है कि इस “निजी एक्सचेंज” की कुछ लाइनें मारन के अखबार “दिनाकरण” को भी दी गईं, जिसके द्वारा अखबार की रिपोर्टें लाने-भेजने का काम किया जाता था। (दयानिधि मारन जून 2004 से मई 2007 तक दूरसंचार मंत्री रहा, हालांकि जब उसे केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से धक्का देकर निकाला गया तब वह कपड़ा मंत्री था, जहाँ पता नहीं उसने देश के कितने कपड़े उतारे होंगे…)

आप सोच रहे होंगे कि आखिर सीबीआई ने यह मामला अपने हाथ में लिया कैसे? असल में दयानिधि मारन से एक गलती हो गई कि उसने अपने ही “अन्नदाता” के परिवार में फ़ूट डालने की हिमाकत कर डाली, हुआ यूँ कि अपने अखबार “दिनाकरण” (Dinakaran) में दयानिधि मारन ने एक सर्वे आयोजित किया कि करुणानिधि के दो बेटों अझागिरि और स्टालिन में कौन अधिक लोकप्रिय है?… बस इसी से नाराज होकर दयानिधि के बाप के मामू यानी करुणानिधि नाराज हो गये और अगले ही दिन उन्हें मंत्रिमण्डल से बाहर का रास्ता दिखाया गया, मारन की जगह ली ए. राजा ने, जो पहले से ही दयानिधि मारन से खार खाए बैठा था… सो उसने “मामू” की आज्ञा से “नीली पगड़ी वाले” से कहकर मारन के खिलाफ़ सीबीआई की जाँच तत्काल शुरु करवा दी…। इस तरह दयानिधि मारन नाम का “ऊँट”, अचानक करुणानिधि नामक पहाड़ के नीचे आ गया…।

अब हम आते हैं अपने “ईमानदार”, “सक्रिय और कार्यशील” इत्यादि सम्बोधनों से नवाज़े गए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के “धृतराष्ट्रवाद” पर…। हाल ही में मुम्बई बम विस्फ़ोटों के बाद सोनिया गाँधी के साथ वहाँ दौरे पर गए इन महाशय ने “आतंकवादियों के खिलाफ़ त्वरित कार्रवाई” करने का बयान दिया… (ये और बात है कि इनकी त्वरित कार्रवाई, इतनी त्वरित है कि अभी तक अफ़ज़ल गुरू की मृत्युदण्ड की फ़ाइल गृह मंत्रालय से होकर सिर्फ़ 2 किमी दूर, राष्ट्रपति भवन तक ही नहीं पहुँची है)। यह तो आतंकवाद और अण्डरवर्ल्ड से सम्बन्धित अफ़ज़ल गुरु या दाऊद इब्राहीम से लेकर अबू सलेम या क्वात्रोची और एण्डरसन की सदाबहार कांग्रेसी कहानी है… लेकिन मनमोहन सिंह की यह खूबी है कि वे “आर्थिक आतंकवादियों” को भी भागने, सबूत मिटाने इत्यादि का पूरा मौका देते हैं, जैसे कि कलमाडी और राजा के मामले में हुआ। (ये और बात है कि डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी याचिकाएं लगाकर और सुप्रीम कोर्ट लताड़कर, इनकी बाँह मरोड़कर इनसे काम करवा लेते हैं)।

दयानिधि मारन के खिलाफ़ कार्रवाई की माँग करते हुए सीबीआई ने जाँच की अपनी पूरी रिपोर्ट मनमोहन सिंह को सितम्बर 2007 में सौंप दी थी। लेकिन पिछले 44 महीने से हमारे “ईमानदार बाबू” उस फ़ाइल पर कुण्डली मारे बैठे रहे। इस बीच 2009 के चुनाव में “मामू” करुणानिधि ने अपने बेटों और मारन बन्धुओं के बीच सुलह करवा दी, दयानिधि-कलानिधि ने नानाजी से माफ़ी माँग ली और 2009 के चुनाव में इन्होंने जयललिता को पछाड़कर लोकसभा की 18 सीटों पर कब्जा किया। दयानिधि मारन ने फ़िर से टेलीकॉम मंत्रालय पाने की जुगाड़ लगाई, लेकिन इस बार रतन टाटा ने “व्यक्तिगत” रुचि लेकर मारन की जगह राजा को टेलीकॉम मंत्री बनवाया, सो मजबूरन दयानिधि को कपड़ा मंत्रालय पर संतोष करना पड़ा (यह तथ्य नीरा राडिया और बुरका हसीब दत्त की फ़ोन टैपिंग में उजागर हो चुका है)। जब “परिवार” में ही आपस में सुलह हो गई और DMK के सांसदों की “ईमानदार बाबू” को सख्त आवश्यकता थी, इसलिए CBI की रिपोर्ट और दयानिधि के खिलाफ़ एक्शन लेने की माँग ठण्डे बस्ते में चली गई। नवम्बर 2010 में कपिल सिब्बल के टेलीकॉम मंत्रालय संभालने के बाद भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया।

“ईमानदार बाबू” ने बाबा रामदेव के आंदोलन को कुचलने के बाद कहा था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ “गम्भीरता” से और “त्वरित कार्रवाई” करेंगे… सो इनकी “त्वरित कार्रवाई” का आलम यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लिया तब कहीं जाकर 44 माह बाद, सत्ता की मलाई और मंत्रालय को पूरी तरह निचोड़ने के बाद दयानिधि मारन की विदाई की गई। इसमें एक आश्चर्यजनक पहलू यह है कि अपनी “ईमानदार बाबू” वाली छवि बनाए रखने को चिन्तित एवं “भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कड़े कदम उठाने” जैसी खोखली घोषणाएं करने वाले मनमोहन सिंह सितम्बर 2007 से अब तक न जाने कितनी बार “केन्द्रीय कैबिनेट” की बैठक में दयानिधि मारन के पड़ोस में बैठे होंगे… क्या उस समय नीली पगड़ी वाले साहब को जरा भी ग्लानि, संकोच या शर्म नहीं आई होगी? आएगी भी कैसे… क्योंकि असल में तो देश का सुप्रीम कोर्ट ही सारे प्रमुख फ़ैसले कर रहा है, माननीय न्यायाधीशों को ही बताना पड़ रहा है कि किसके खिलाफ़ केस शुरु करो, किसे जेल भेजो, किसे पकड़ो, क्या करो, क्या ना करो…। मनमोहन सिंह को तो सिर्फ़ आज्ञा का पालन करना है… सुप्रीम कोर्ट न होता तो राजा-कलमाडी-नीरा राडिया-मारन-कनिमोझि आदि सभी अब तक हमारी छाती पर मूंग दल रहे होते…

Suresh Chiplunkar

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